रहस मेला : वसंत पंचमी से होली तक चलने वाला उत्सव

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राजा मर्दन सिंह जूदेव की राज्यारोहण की स्मृति में 200 सालाें से हो रहा आयोजन

सागर (sagar news)। प्रचलित किंवदंती के अनुसार रहस मेले की शुरुआत सन 1809 में वीर बुंदेला महाराज के पौत्र राजा मर्दन सिंह जूदेव के राज्यारोहण की स्मृति में हुई थी। पहले गढ़ाकोटा को हृदय नगर के नाम से जाना जाता था। गधेरी नदी एवं सुनार नदी के बीच बसे इस शहर में आने वाले प्रथम रहवासी आदिवासी थे। उनके समय से यह शहर एक गढ था। इसलिए इसका नाम गढ़ाकोटा पड़ा।

दूसरी क्विदंती है कि, 17वीं शताब्दी में यह शहर राजपूत सरदार चंद्रशाह के कब्जे में आया। जिसने यहां एक सुंदर किला बनवाया मूलतः इसे कोटा कहा जाता था। किंतु किले के निर्माण के बाद इसका नाम गढ़ाकोटा हो गया । सन् 1703 में छत्रसाल के पुत्र हिरदेशाह ने राजपूत स्वामी को हटाकर अपना कब्जा कर लिया ।

माना जाता है कि हिरदेशाह का इस गढ़ाकोटा से काफी लगाव था ।इस कारण यहां उसने एक नगर का निर्माण कराया। जिसका नाम हिरदेनगर रखा गया था। उनकी मृत्यु के बाद प्रदेश के अधिकार के संबंध में एक विवाद उठा,और उसके पुत्र पृथ्वीराज ने पेशवा की सहायता से इस प्रदेश को हथिया लिया। सन 1785 में महाराजा मर्दन सिंह जू देव गद्दी के उत्तराधिकारी बने ।

इतिहासकारों के अनुसार महाराजा मर्दन सिंह एक चतुर शासक थे। उन्होंने गढ़ाकोटा एवं उसके आसपास किले और बावड़ी बनवाई थी। जो रमना वन परिक्षेत्र में आज भी है। जू देव जी ने अपने शासनकाल में 1809 में गढ़ाकोटा में बसंत पंचमी से होली तक पशु मेला भरवाया। जो निरंतर आज भी जारी है। यह साल मेले का 213 वाँ साल है। गौरतलब है कि पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव द्वारा कुछ वर्षों से इस मेले में किसान मेला, पंचायती राज मेला, कृषि मेला लगवाना भी शुरू किया और मेले को और भव्य स्वरूप प्रदान किया।

रहस मेला क्यों पड़ा मेले का नाम रहस?

उस समय देश में अंग्रेजों का राज था। उनकी नजरों से बचकर उनके विरुद्ध लड़ने की योजनाओं को अमलीजामा इसी रहस मेले में पहनाया जाता था। रहस मेले में कई राज्यों के राजा पशुओं की खरीद-बिक्री के लिए आते थे। इसलिए मेले में पशुओं, खास तौर पर हाथी- घोड़े खरीदने के बहाने अन्य प्रदेशों से आने वाले राजा एक दूसरे से मिलकर अंग्रेजों से लड़ने की योजना बनाते थे।चूँकि मेले में आगामी योजनाओ का रहस्य छुपा था और अंग्रेजों को लगता था राजा पशुओं को ख़रीदने-बेचने के लिए इस मेले में जाते हैं, इसलिए इसका नाम रहस मेला पड़ा।

इतिहासकार एवं गढ़ाकोटा स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ एसएम पचौरी ने मेले के बारे में बताया कि, सुनार एवं गधेरी नदी के संगम तट पर बसा गढ़ाकोटा नगर अपने अजेय दुर्ग और किले से अपनी प्राचीनता को दर्शाता है। राजा शासक बने और उन्होंने गढ़ाकोटा किले में शासन करते वक््त 100 फीट ऊंची तथा 15 फीट लंबाई-चौड़ाई की एक ऐसी बुर्ज बनवाई जिस पर चढ़कर सागर एवं दमोह के जलते हुए दिए को भी देखा जा सकता था। उन्होंने 1809 में एक विशाल व्यवसायिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व के मेले के आयोजन की नींव रखी।


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