बुंदेलखंड जैसी विरासतें ही भारत की साझी संस्कृति, संगोष्ठी का समापन

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सागर (sagarnews.com)। बुंदेलखंड की सांस्कृतिक विरासत विषय पर आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी का शनिवार को समापन किया गया। समापन समारोह के मुख्य अतिथि प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा रहे, जिन्होंने अपने उद्बोधन में बुंदेलखंड को भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग बताया तथा कहा कि वर्तमान समय में सम्पूर्ण बुंदेलखंड के इतिहास के पुनर्लेखन की महती आवश्यकता है।

समापन समारोह की अध्यक्षता कर रहे प्रो. अम्बिका दत्त शर्मा ने कहा कि बुंदेलखंड वह भूमि है जिसमें प्राचीन समय से लेकर वर्तमान समय तक अनेक संस्कृतियों से संबंधित लोगों को अपने पास शरण दी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बुंदेलखंड का विशेष योगदान रहा है। जिसके उदाहरण स्वरूप झाँसी की रानी एवं रतोना जैसे आंदोलन हुए।

आज संगोष्ठी के दो तकनीकी सत्र आयोजित किये गये। द्वितीय अकादमिक सत्र की अध्यक्षता डॉ. विश्वजीत सिंह परमार एवं प्रो. केके त्रिपाठी ने की। कन्हैया यादव द्वारा ओरछा की सांस्कृतिक विरासत, अरुण झा द्वारा ललितपुर का अप्रतिम स्थल चांदपुर के विशेष सन्दर्भ में, सृष्टि घोष द्वारा रॉक आर्ट ऑफ खानपुर, निधि सोनी द्वारा बुंदेलखंड के लोकजीवन में लोक उत्सव एवं मेले, डॉ. सत्यनारायण देवलिया द्वारा बुंदेलखंड की वैभवशाली विरासत बालावेहट, अवधेश प्रताप सिंह तोमर द्वारा शास्त्री संगीत एवं गायन का वाचन किया।

तृतीय अकादमिक सत्र की अध्यक्षता डॉ. सरोज गुप्ता एवं विनोद मिश्र ने की। डॉ. विश्वजीत सिंह परमार द्वारा बुंदेलखंड की लोक संस्कृति के विविध पक्ष, डॉ. भरत कुमार शुक्ला द्वारा महाराजा छत्रसाल के गौरव का प्रतीक धुबेला संग्रहालय, शीरीन कॉमफर्ट द्वारा द अनटच्ड हेरीटेज ऑफ बुंदेलखंड, राजेश अहिरवार द्वारा बुंदेलखंड की संस्कृति में लोकपर्व ‘सुआटा‘, डॉ. दीपक मोदी द्वारा बुंदेलखंड की सांस्कृतिक विरासत में एकता, डॉ. राहुल स्वर्णकार द्वारा बुंदेलखंड के संगीत में ताल वाद्य परम्परा का वाचन किया।

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