पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित हुए राई के मृदंगवादक रामसहाय पांडेय

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सागर (sagarnews.com)। राई नृत्य को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले कनेरा देव निवासी रामसहाय पांडेय को सोमवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। पद्मश्री अवार्ड की घोषणा 25 जनवरी को हुई थी, जिसके बाद से कनेरा देव के रामसहाय पांडेय लगातार सुर्खियों में बने हुए थे।

बुंदेलखंड का राई नृत्य देश-विदेश में पहचान बना चुका है। उसमें रामसहाय पांडेय का भी विशेष योगदान रहा। पांडेय का जन्म 11 मार्च 1933 को मडधार पठा में हुआ था। इनके पिता का नाम लालजू पांडेय व माता का नाम करैयाबाली था। इनके पिता खेती व गांव के ही मालगुजार के यहां काम करते थे।

पांडेय अपने चार भाइयों में सबसे छोटे थे। इनकी बड़ी बहन कनेदादेव में ब्याही थी, जहां आकर वे बाद में रहने लगे। वे बचपन में ही मृदंग बजाना सीख गए थे। इसके बाद वर्ष 17-18 साल की उम्र से धीरे-धीरे राई नृत्य के प्रति लगाव हुआ। वहीं से वह राई नृत्य करने के लिए जाने लगे। इससे वे पूरे क्षेत्र में ख्यात हो गए।

पांडेय जब शादी योग्य यानी 20-21 साल के हुए तो राई नृत्य करने की वजह से ब्राह्मण समाज में उन्हें कोई लडक़ी देने तैयार नहीं था। उन्होंने एक तरह से सामाजिक प्रतिबंध झेला। 1964 में आकाशवाणी भोपाल द्वारा भोपाल के रवींद भवन में रंगवार असव में कहें राई नृत्य के लिए बुलाया गया। पांडेय ने तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद्र नारायण की उपस्थिति में राई की प्रस्तुति दी।

सराहना व प्रोत्साहन मिलने के बाद वे लगातार आकाशवाणी एवं पंचायत व समाज सेवा विभाग के कार्यक्रमों में जाने लगे। 1980 में मप्र शासन द्वारा स्थापित आदिवासी लोककला परिषद सदस्य चुने गए। 1980 में ही मध्यप्रदेश शासन के पंचायत सेवा विभाग द्वारा रायगढ़ में मप्र शासन द्वारा नित्य शिरोमणि की उपाधि से सम्मानित किया गया।

इसके बाद सन 1984 में म.प्र शासन द्वारा शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके बाद सन 1984 में ही जापान कान के आमंत्रण पर एक माह के लिए जापान भेजा गया। इसके बाद निरन्तर पांडेय ने देश-विदेशों में प्रस्तुति दी।

पांडेय कई साल से युवक-युवतियों को राई नृत्य का प्रशिक्षण दे रहे हैं। यहां के राई नर्तकों ने देश-विदेश में इसकी अलग पहचान बनाई। पांडेय के नेतृत्व में वर्ष 2006 में मप्र शासन द्वारा दुबई में राई नृत्य की प्रस्तुति दी गई।

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