हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में कामधेनु अध्ययन एवं शोध पीठ की स्थापना

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सागर (sagarnews.com)। डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में कामधेनु अध्ययन एवं शोध पीठ की स्थापना कार्यक्रम संपन्न हुआ। मुख्य अतिथि केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री परषोत्तम रूपाला रहे। उन्होंने कहा कि यह गर्व की बात है कि विश्वविद्यालय में कामधेनु अध्ययन और अनुसंधान केंद्र स्थापित करने के लिए विश्वविद्यालय ने मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के साथ समझौता पत्रक पर हस्ताक्षर किया है। भारतीय गायों की क्षमता अपार है, जरुरत इसे समझने और समझाने की है। दुर्भाग्य से, समय के साथ हम देशी गोवंश का महत्व भूल गए हैं।विश्वविद्यालय को चाहिए कि छात्रों के हॉस्टल की ही तर्ज पर गायों के आश्रय के लिए भी एक बड़े केंद्र की स्थापना करे। उन्होंने कहा कि गौवंश, गौमूत्र आदि से होने वाली आय पर गौशाला आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकती है।

कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने कहा कि विश्वविद्यालय की यह नवाचारी पहल ‘वोकल फॉर लोकल’ से अनुप्राणित है। डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय मध्यप्रदेश का पहला विश्वविद्यालय है और मध्यप्रदेश के पहले ‘कामधेनु अध्ययन एवं शोध पीठ’ की स्थापना भी इसी विश्वविद्यालय में हो रही है। गो-संवर्धन के क्षेत्र में मंत्रालय की विभिन्न महत्वाकांक्षी योजनाओं को इस पीठ के माध्यम से हमारा विश्वविद्यालय अपने स्तर पर क्रियान्वित कर एक व्यापक सामुदायिक क्रांति में बदलने के लिए संकल्पित है।

विशिष्ट अतिथि पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. वल्लभभाई कथीरिया ने कहा कि यह एक सुअवसर है कि गौ आधारित अर्थव्यवस्था की शुरुआत हो रही है। एक समय में मालवीय जी ने विश्वविद्यालय में गौशाला स्थापित करने की शुरुआत की थी। आज भी यह काम विश्वविद्यालय के माध्यम से किया जा रहा है। यह एक महान काम है। आज पूरे विश्व में पैराडाइम शिफ्ट हो रहा है। गौ संवर्धन की दिशा में आज एक नया अध्याय जुड़ रहा है।

गौ-पालन एवं पशुधन संवर्धन बोर्ड, मध्य प्रदेश शासन के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानन्द गिरी ने कहा कि मध्य प्रदेश सर्वाधिक गौ प्रेमी और गौ सेवकों का प्रदेश है। मध्य प्रदेश गौ संवर्धन आयोग के साथ मिलकर डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में विश्व की सबसे बड़ी गौशाला स्थापित की जा सकती है। कामधेनु पीठ इस अर्थ में एक शुभ कदम है। मैं विश्वास करता हूँ कि यह पीठ देश के एक प्रतिमान बने जहां गौधन संवर्धन के लिए वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन-अध्यापन हो सकेगा। वहीं इस मौके पर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो.बलवंतराय शांतीलाल जानी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

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