सागर (sagarnews.com)। डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के समाजविज्ञान शिक्षण अधिगम केंद्र, भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद नई दिल्ली एवं राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (नई दिल्ली) के संयुक्त तत्त्वावधान में ‘आजादी का अमृत महोत्सव’: स्वाधीनता संग्राम का मूल्यबोध व्याख्यानमाला के अंतर्गत स्वाधीनता बोध : भारत के बाहर, भारत की आवाज़ विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने कहा कि प्रत्येक नागरिक के मन में स्वाधीनता के मूल्यबोधों का होना आवश्यक है। इसी माध्यम से हम अपनी विरासत को संवर्धित और संरक्षित करते हुए आगे बढ़ सकते है। वैश्विक चुनौतियों से लड़ने के लिए हमारी प्राचीन ज्ञान विरासत और साझी संस्कृति एक बहुमूल्य निधि है। भारत ग्राम प्रधान देश है, गाँव को समृद्ध और आत्मनिर्भर करके ही हम आज़ादी के उद्देश्यों को हासिल कर सकते है।
प्रो. गुप्ता ने बताया कि स्वाधीनता बोध एक वैचारिक श्रृंखला है, जो व्यक्तिगत तौर पर खुद में सुधार एवं आत्मनिर्भरता से जुड़ा है। आज़ादी के अमृत महोत्सव हमें यह अवसर देता है कि हम एक बार फिर भारतीय मन, मानस और संस्कृति को गौरवान्वित हो कर याद करें। उन्होंने बताया कि भारत की चिंता हमेशा से ही आध्यात्मिक और सांस्कृतिक स्वाधीनता की रही है।
भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद्, नई दिल्ली के सदस्य सचिव प्रो.सच्चिदानंद मिश्र ने आज़ादी के अमृत महोत्सव को एक ज्ञान यात्रा के रूप में रेखांकित किया। प्रो. मिश्र ने बताया कि इस तरह के संयुक्त आयोजन भारतीय ज्ञान-विषयों की आत्मिक एवं अंतर्भूत एकात्मकता को प्रतिबिम्बित करते है।
उनका कहना था कि सागर विश्वविद्यालय के टीएलसी इस स्वरुप में कार्य करते हुए समाजविज्ञान विषयक ज्ञान संरचनाओं को विभिन्न परिचर्चाओं-संवाद के माध्यम से घनीभूत कर रहा है। प्रो. मिश्र ने बताया कि यह व्याख्यान मूलतः देश की आज़ादी में देश से बाहर हुए जन -संघर्षों को याद करने का अवसर है। हम अक्सर यह भूल जाते है कि भारत के बाहर रहने वाले प्रवासी भारतीयों ने भी देश की आज़ादी के लिए अपना बलिदान दिया है।
प्रवासियों ने धर्म, भाषा और सांस्कृतिक मूल्यों के लिए दोहरा संघर्ष किया : प्रो. मोहनकांत
व्याख्यान के मुख्य वक्ता विख्यात मानवशास्त्री एवं यूनेस्को पीठ नीदरलैंड के प्रो. मोहनकांत ने बताया कि ब्रितानी उपनिवेशवादी हुकूमत ने प्रवासी भारतीयों के साथ गुलामों जैसा व्यवहार किया। यह सभी प्रवासी भारतीय अपनी अपनी जगह भारत की आज़ादी के लिए जुल्म और यातनाएं सहते हुए आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे थे। सूरीनाम, मॉरिशस, गुयाना, त्रिनाद सहित कई देशों में जहाँ-जहाँ गुलाम बनाकर लाये गये भारतीय अपने धर्म, भाषा और सांस्कृतिक मूल्यों के लिए भी लड़ रहे थे।
भारत के बाहर रहने वाले भारतीयों की आवाज़ देश की आज़ादी के बाद भी नहीं सुनी गई। उनके बारे में देश के विश्वविद्यालय बहुत कम जानते है। आज यही समय है जब आज़ादी के अमृत महोत्सव की इस यात्रा में डायस्पोरा स्टडीज के अंतर्गत शोध कराएँ जाये। ऐसा करके ही हम प्रवासी भारतीयों के संघर्ष से परिचित हो सकेंगे।
व्याख्यान में भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो. आरसी सिन्हा, रिफ्रेशर पाठ्यक्रम के प्रतिभागी, विश्वविद्यालय के शिक्षक, शोधार्थी सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों के लोग जुड़े हुए थे। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (नई दिल्ली) के डॉ. अंशुल खरबंदा ने आभार वक्तव्य के साथ किया। कार्यक्रम का संचालन व्याख्यानमाला के समन्वयक डॉ. संजय शर्मा ने किया।
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