सागर (sagarnews.com)। डॉ. सर हरीसिंह गौर के 152वें जन्म दिवस पर गौर जयंती उमंग, उत्साह और उल्लास से मनाई गई। परम्परानुसार विश्वविद्यालय की कुलपति ने तीनबत्ती स्थल पर डॉ. गौर की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और अपने संबोधन में कहा कि सागर शहर के नागरिकों, बुद्धिजीवियों, विद्यार्थियों और जन-जन का का डॉ. गौर के प्रति प्रेम, अगाध श्रद्धा और भाव देखकर मैं भाव विह्वल हूँ। डॉ गौर ने विश्वविद्यालय के रूप में एक शिक्षा और ज्ञान का केंद्र स्थापित किया है जिसके माध्यम से इस समूचे अंचल ने पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। आप सभी विश्वविद्यालय के विकास में अपना सहयोग करें ताकि सर गौर के सपनों को साकार किया जा सके। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
उद्बोधन पश्चात तीन बत्ती से शोभायात्रा निकाली गई। गौर स्मारक स्थल पर भी कुलपति ने पुष्पांजलि दी। शोभायात्रा के विश्वविद्यालय पहुँचने पर उन्होंने गौर मूर्ति पर माल्यार्पण किया और गौर समाधि पर पुष्प अर्पित किया। मुख्य अतिथि भूपेन्द्र सिंह, कुलाधिपति प्रो. बलवंतराय शांतिलाल जानी ने भी डॉ.गौर की समाधि पर पुष्प अर्पित किया।
विश्वविद्यालय के 3 एम पी सिग्नल एनसीसी कैडेट्स तीनबत्ती स्थल और विश्वविद्यालय परिसर में ले.कर्नल डॉ धर्मेन्द्र सर्राफ, डॉ.गौतम प्रसाद और ऊषा राणा के नेतृत्व में कुलपति को गार्ड ऑफ़ ऑनर दिया।
गौर प्रांगण में मुख्य समारोह आयोजित किया गया। अतिथियों ने डॉ. गौर की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और दीप प्रज्जवलित किया। कुलसचिव संतोष सोहगौरा के स्वागत भाषण के पश्चात गौर उत्सव के मुख्य समन्वयक प्रो. आर के त्रिवेदी ने छह दिवसीय गौर उत्सव में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी दी।
डॉ. गौर का समूचा जीवन मनुष्य के अपराजेय जिजीविषा की जय-यात्रा है- कुलपति
इस अवसर पर कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने ज्ञान-दान के अन्यतम पुरोधा, शैक्षिक उन्नयन के अभिनव सुत्रधार और भारतीय मेधा के वैश्विक पहचान, विश्वविद्यालय के संस्थापक डॉ. हरीसिंह गौर जी की 152 वीं जयंती पर सभी को बधाई दी। उन्होंने कहा कि डॉ. हरीसिंह गौर की जयंती न केवल हमारे विश्वविद्यालय के लिए बल्कि समूचे बुन्देलखण्ड के लिए अज्ञानता के अंधेरे के विरुद्ध ज्ञान के उजाले का नूतन विवेक है। आज का दिन उज्ज्वल चेतना का पावन अभिषेक है।
उन्होंने कहा कि डॉ. गौर का समूचा जीवन मनुष्य के अपराजेय जिजीविषा की जय-यात्रा है। उन्होंने जीवन-भर सर्वोच्चता की संकल्पना को अपने ढंग से सिरजा, सहेजा और साकार किया। आसमान की बुलंदी पर रहते हुए भी डॉ. गौर ने सागर की जमीनी हकीकतों को कभी भुलाया नहीं। वे जानते थे कि बुंदेलखंड की जय-यात्रा ज्ञान के रास्ते से होकर ही जायेगी। इस भूमि पर उन्होंने अपने पुरुषार्थ से ज्ञान की अनंत रष्मियों कोसंकलित कर सागर विश्वविद्यालय का रूप दे दिया। जीवन भर की जुटाई गयी निजी पूँजी को सार्वजनिक हित में इस तरह समर्पित कर गौर साहब ने जाहिर इतिहास का एक ऐसा अफसाना लिख दिया जिसे आज सारी दुनिया गुनगुना रही है। हमारा विष्वविद्यालय केवल बुन्देलखण्ड के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए ज्ञान का अभिनव तीर्थ है।
विश्वविद्यालय कोरोना की महामारी के दौरान भी लगातार क्रियाषील रहा। दुनिया भर के शीर्ष वैज्ञानिकों की में 20 वैज्ञानिक हमारे विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं। इस प्रतिष्ठित सूची में सम्मिलित हमारे विवि के भी शिक्षक हैं। ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र शिक्षकों, विद्यार्थियों और अधिकारियों की उपलब्धियों के लिए बधाई दी और कहा कि यह कोशिश हमारे संस्थापक के सपनों को पूरा करने की दिशा में एक जागृत पहल है। उन्होंने विशाविद्यालय में जारी परियोजनाओं और भविष्य की योजनाओं के बारे में रूपरेखा भी प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय अपने विद्यार्थियों के चतुर्दिक विकास और अपनी अकादमिक प्रतिबद्धता के साथ ही अपने सामाजिक सरोकारों को भी नये ढंग से सृजित कर रहा है।
उन्होंने कहा कि डॉ. गौर अपने प्रगतिशील सरोकारों के साथ व्यक्तिगत मुक्ति की जगह सामूहिक मुक्ति के हिमायती थे। अपनी मातृभूमि के लिए ज्ञान के उजाले का जो सपना देखा था, उसे उन्होंने अपनी आस्था और त्याग से पूरा किया, आज उनके जन्मदिवस पर हम सबका कर्तव्य बनता है कि हम अपने संस्थापक के सपनों को कभी बेरंग नहीं होने देंगे।
मुख्य अतिथि कैबिनेट मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि महादानी कर्ण के बाद के बाद यदि किसी का नाम लिया जा सकता है तो वे डॉ. गौर थे। उन्होंने कहा कि यह ऐसा शुभ दिन है जो समूचा बुंदेलखंड एक उत्सव के रूप में मनाता है। डॉ. गौर के समय में यहाँ अनेकानेक विषय शुरू हुए जो आज भी चल रहे हैं। उनके द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय को आज केन्द्रीय दर्जा मिल चुका है। वक्त की मांग है कि कुछ नए अकादमिक पाठ्यक्रम शुरू किये जाएँ और बुंदेलखंड के अंचल में भी विश्वस्तरीय पढ़ाई होने लगे, इसके प्रयास किये जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि हम डॉ. गौर का ऋण कभी नहीं चुका सकते। हमारी, इस शहर की पहचान उन्हीं के कारण ही है। कुछ ऐसे प्रयास किये जाएँ कि बुंदेलखंड अंचल के विद्यार्थियों को इस विश्वविद्यालय में प्रवेश में प्राथमिकता मिले।
विशिष्ट अतिथि सांसद राजबहादुर सिंह ने कहा कि मैंने लोकसभा में डॉ. गौर को भारत रत्न देने की मांग उठाई थी। सरकार भी मेरी इस मांग पर विचार कर रही हैं लेकिन इस मुहिम में जनसहयोग भी उतना ही आवश्यक है। मैं उम्मीद करता हूँ कि कि डॉ. गौर को भारत रत्न मिले, इसके लिए जनभागीदारी और सबका सहयोग मिलेगा। डॉ. गौर ने विश्वविद्याय के माध्यम से शिक्षा की अलख जगाई थी। इस बुंदेलखंड क्षेत्र में आज उन्हीं के कारण हम सब कुछ पढ़-बन पाए। इस अंचल के लोगों को शिक्षा के इस केंद्र का लाभ मिले इसके लिए ठोस प्रयास किये जाने चाहिए।
कुलाधिपति प्रो. बलवंतराय शांतिलाल जानी ने कहा कि डॉ. गौर की जयन्ती पर बौद्धिक समुदाय और जनभागीदारी को देखकर ऐसा लग रहा है कि यह उत्सव नहीं बल्कि अनुष्ठान है। लोगों की डॉ. गौर के प्रति श्रद्धा और सम्मान देखकर मेरा मन आह्लादित है। पूर्व विद्यार्थियों की विश्वविद्यालय के प्रति सोच की मैं प्रशंसा करता हूँ। डॉ. गौर अर्वाचीन समय के भामाशाह हैं। निश्चित तौर पर यह विश्वविद्यालय तेजस्वी विकास करेगा।
इस अवसर पर अलग-अलग श्रेणी में विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया गया। पत्रकारिता विभाग के प्रायोगिक समाचार-पत्र ‘समय’ और ‘मध्य भारती’ शोध पत्रिका के 80वें अंक के विमोचन के साथ ही कई शिक्षकों की पुस्तकों का भी विमोचन हुआ।
उत्कृष्ट कार्यों और सेवाओं के लिए विश्वविद्यालय के शिक्षकों, अधिकारियों और कर्मचारियों को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. ललित मोहन ने किया। आभार ज्ञापन मुख्य समन्वयक प्रो. आर के त्रिवेदी ने किया।
For latest sagar news right from Sagar (MP) log on to Daily Hindi News डेली हिंदी न्यूज़ के लिए डेली हिंदी न्यूज़ नेटवर्क Copyright © Daily Hindi News 2021